उच्च शिक्षा को बेहतर करने के लिए लगातार मंथन जरूरी: राज्यपाल अनुसुईया उईके

उच्च शिक्षा को बेहतर करने के लिए लगातार मंथन जरूरी: राज्यपाल अनुसुईया उईके
बिलासपुर। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्यकरने वाले लोग समाज के सबसे ज्यादा विद्वान लोगों में से एक होते हैं। उनके ऊपर ऐसी पीढ़ी को बुनने की जिम्मेदारी होती है, जो समाज का नेतृत्व करेंगे। बौद्धिक रूप से प्रखर जागरूक लोगों का चुनाव कर उन्हें शिक्षित करते हैं। जिससे वे देश का राजनीतिक, विज्ञान, साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में नेतृत्व कर सकें। इसलिये उच्च शिक्षा को बेहतर करने लगातार मंथन करना बेहद जरूरी है। राज्यपाल अनुसुईया उईके ने मंगलवार को बिलासपुर के अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में आयोजित सेंट्रल जोन के कुलपतियों के सम्मेलन के समापन कार्यक्रम में यह बात कही।
विश्वविद्यालय के आॅडिटोरियम में आयोजित कुलपतियों के सम्मेलन में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, तेलंगाना आदि 7 राज्यों के कुलपति शामिल हुये। यह दो दिवसीय सम्मेलन इम्पू्रविंग एक्सेस एंड गवर्नेंस रिफार्म्स इन इंडियन हायर एजुकेशन थीम पर आधारित था। जिस पर विभिन्न राज्यों से आये हुए विद्वानों के बीच मंथन विचार-विमर्श, चचार्एं हुयी और शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये निष्कर्ष निकाले गये।
राज्यपाल ने कहा कि इस सम्मेलन के निष्कर्षों और प्रस्तावों को छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में लागू किया जायेगा। जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के बीच सकल नामांकन काफी कम है। इसे बढ़ाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये। सुश्री उईके ने इस सम्मेलन को एक सराहनीय प्रयास बताया।
राज्यपाल ने कहा कि हमारे देश में उच्च शिक्षा का विस्तार हो रहा है। पर आवश्यकता है कि वे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप गुणवत्तायुक्त हो। यह प्रयास करें कि सभी वर्गों तक उच्च शिक्षा की पहुंच हो। सकल नामांकन अनुपात की तुलना करें तो विकसित देशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। इसे किस प्रकार बढ़ाया जाये इस पर विचार किया जाना चाहिये। यह लक्ष्य होना चाहिये कि उच्च शिक्षा में सकल नामांकन के अनुपात को बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक ले जायें। हमारे समक्ष शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। इस मुद्दे को हल करने के लिये सभी विश्वविद्यालयों में यूनिफार्म सिस्टम बनाये जाने की आवश्यकता है। जिससे त्वरित नियुक्तियां सुनिश्चित हो सके। इसके लिये राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से एक केन्द्रीयकृत प्रणाली पर विचार किया जा सकता है। प्रयास करें कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम वर्तमान समय के अनुरूप हो, उसमें रचनात्मकता हो।